Monika garg

Add To collaction

लेखनी कहानी -12-Apr-2022 शोर्ट स्टोरी लेखन # दो पाटन के बीच

नारी का जीवन हमेशा से ही दो पाटों मे पिसता रहता है ।खासकर जब शादी करके ससुराल आती है तो जिंदगी बहुत इम्तिहान लेती है एक औरत के।

रूचि अपने परिवार मे सब से समझदार लड़की थी उसके माता पिता हमेशा कहते थे कि हमारी लाडली जिस घर मे भी जाएगी स्वर्ग बना देगी उस घर को।
क्या कढाई, क्या बुनाई, संगीत ,खाना बनाना । सभी गुण तो थे रुचि मे।पढाई भी भगवान की दया से डाक्टरी की पढ़ाई की थी।मतलब ये कि सर्वगुण संपन्न थी रुचि।एक अच्छे घराने से रिश्ता आया था उसके लिए ।घर थोड़ा रुढ़िवादी था पर लड़का सीए था।पिता ने सोचा मुझे लड़की की तरफ से तो कभी कोई शिक़ायत मिलेगी नही ।मेरी बेटी हर परिस्थिति सम्भाल लेगी।यही सोचकर रुचि की शादी रमेश से हो गयी। ससुराल मे पहला कदम था रुचि का ।मन मे ठान कर आयी थी कि सब को अपना बना कर रहेगी। रुचि के ससुर बीमार रहते थे दवाईयां वगैरह चलती रहती थी।उनको ये नही बताया गया था कि रुचि पढ़ी लिखी डाक्टर है ।पहले ही दिन सास बहू एक कमरे मे बैठी थी ।रुचि की सास उससे मुखातिब होते हुए बोली,"देखो बहू ।हमने तुम्हारे पिताजी को पहले ही कह दिया था कि शादी के बाद तुम डाक्टरी की प्रैक्टिस नही करोगी ।बस अपना घर सम्भालो।और हां घर मे किसी चीज की कमी नही है ।और तुम्हारे ससुर बिल्कुल खिलाफ है ज्यादा पढ़ लिखीं बहू के। तुम्हारे बारे मे यही बताया है की बारह पढ़ी है ।उनको कभी पता नही चलना चाहिए कि तुम डाक्टरी पढ़ी हो।"
सास अपनी बात रुचि के आगे रख कर उठकर चल दी।ये बात तो रुचि को पता थी कि वो आगे प्रैक्टिस नही कर पायेगी।पर ये नही पता था कि ससुर जी को ये भी नही पता कि बहू डाक्टरी पढ़ी है।पहले दिन रुचि ने सबके लिए हलवा बनाया और उसे लेकर घूंघट करके ससुर जी के पास गयी । चरणस्पर्श करके हलवा आगे कर दिया ।ससुर मन ही मन बहुत खुश हुए कि चलों बहू है तो संस्कारी । घुंघट निकाल कर आयी ओर चपड चपड बोल भी नही रही है।नही तो आजकल की लड़कियां शादी के बाद ससुर को पापा जी पापा जी कहकर साथ बैठ कर खाती है ।चलो हमारी बहू तो बहुत संस्कारी है।
रुचि के ससुर मन ही मन बहुत खुश हो गये।वह बहुत बीमार रहते थे दवा पानी का सारा इंतजाम रमेश ही देखता था ।पति के काम मे हाथ बंटाने की मंशा से एक दिन रुचि बोली,"सुनीये अगर आप कहो तो बाबू जी की दवा पानी मै देख लिया करूं आगे से ।" रमेश तो चाहता ही यही था । क्यों कि घर मे और कोई पढा लिखा नही था ।बस उसने रुचि को समझाते हुए यही कहा ,"तुम बाबूजी के आगे यही कहा करना कि ये निकाल कर दे गये है दवाईयां।"रुचि ने  हां मे हां मिलाई।शाम को जब दवाईयों का समय हुआ तो रुचि दवाई लेकर पहुंच गयी ससुर जी के कमरे मे घुंघट निकाल कर और दवाई वाली कटोरी आगे करके गिलास पानी का रख दिया साथ ।इतने मे ही ससुर को समझ आ गया कि आज बहू दवाई लाई है।वो बोले ,"बेटा बहू ।वो नालायक कहां है जो तुम दवाई लाई हो।"रुचि ने घुंघट मे ही सिर हिलाकर इशारा कर दिया की वो घर नहीं आये अभी तक।ससुर को सारी बात समझ आ गयी।वो बोले,"अच्छा अच्छा ठीक है बेटा।"इस तरह रुचि ने ससुराल मे सब का मन जीत लिया ।अब ससुर जी की तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी थी। आक्सीजन पर रहने लगे थे ।दमे के मरीज थे साथ मे शूगर भी थी।अब तो इन्सूलिन के इंजेक्शन लगते थे।एक दिन रमेश की रिश्तेदारी मे किसी की मौत हो गयी। मां बेटे को वहां जाना था दो दिन जाने के दो दिन आने के और दो दिन वहां रुकने के ।कुल मिलाकर छह दिन बाहर रहना था ।एक बार मन हुआ कि नर्स को छोड़ देते है पर नयी नयी शादी हुई थी घर भरा था सामान से और रुचि भी अकेली रहती। रमेश ने रुचि को दो चार नम्बर दे दिये ।अपने दोस्तों के की अगर पापा की तबीयत खराब है तो उनको बुला लेना।
ये कह कर मां बेटा रवाना हो गये।उस दिन तो रुचि ने अपने ससुर जी को सम्भाल लिया। लेकिन अगले दिन रात को अचानक से ससुरजी की तबीयत खराब हो गयी।अब रुचि क्या करे।उसने रमेश के सभी दोस्तों को फोन लगाये।पर किसी का फोन बंद आ रहा था तो कोई बाहर गया था।। रुचि के घबराहट के मारे हाथ पांव फूल गये।अब क्या करे ससुर जी को अकेली अस्पताल गाड़ी चलाकर ले जाए तो ससुर जी को पता चल जाएगा कि बहू माडर्न है । पढ़ी लिखी है ।वह थोड़ी देर तो सोचती रही फिर उसने सोचा हमे डाक्टरी मे यही सीखाया गया है कि पहले मरीज बाकी बातें बाद मे।
वह तुरंत उठी और पड़ोस से दो चार लोगों को जगा लायी ।ताकि वे उसके ससुर को गाड़ी मे उठाकर लिटा सके।और खुद कार ड्राइव करके अस्पताल पहुंची । जल्दी से उतर कर स्ट्रैचर पर ससुर जी को लिटा कर अंदर अस्पताल मे ले गयी।उस समय रुचि के ससुर होश मे थे जब रुचि डाक्टरों से अंग्रेजी मे बात कर रही थी । बेहोश होते होते ससुर जी ने रुचि को यही कहते सुना था ।"आप ऐसे कैसे कर सकते है मै भी एक डाक्टर हूं।"
रुचि की बदौलत उसके ससुर का इलाज समय पर हो पाया।  
जब वो होश मे आये तो उन्होंने नर्स से पूछा,"हमारी बहूरानी किधर है । नर्स ने बाहर बैठी रुचि को अंदर भेजा ।वह लम्बा सा घुंघट निकाल कर ससुरजी के पास जाकर खड़ी हो गयी।तब उसके ससुर बोले,"बेटा बहू ।उतार दो ये घुंघट ।मै गलत था मुझे लगता था ज्यादा पढ़ लिखीं बहू घर के बारह बांट कर देती है ।पर आज मै समझ गया। संस्कार ही किसी व्यक्ति की असली पहचान है। मुझे पता है तुम एक डाक्टर हो मैने तुम्हारी और डाक्टर की बातें सुन ली थी।अब ये सारे रूढ़िवादी विचार छोड़ कर मै अपनी बहू को भेजूंगा डाक्टरी की प्रैक्टिस करने के लिए।
रुचि ससुर जी के पैर पकड़ कर उनके पयताने बैठी थी ओर उसके आंसू झड़ रहे थे खुशी के।

जोनर# स्त्री विमर्श 

   30
15 Comments

Reyaan

13-May-2022 07:42 PM

Very nice 👍🏼

Reply

Seema Priyadarshini sahay

12-May-2022 07:01 PM

बहुत खूबसूरत

Reply

नंदिता राय

12-May-2022 06:42 PM

Nice 👍🏼

Reply